बुधवार, २४ एप्रिल, २०२४

चित्र काव्य खट्याळ मुलगा


सिद्ध साहित्यिक समूह 
आयोजित चित्र काव्य 
     *खट्याळ मुलगा* 


     नित्य उद्योग रोजचा
     असे  काढण्याचा खेळ 
     घेऊनिया डोई वरी
.    कसा घालवितो वेळ 

    वदतो पहा कसा तो
   आहे मी तर बलवान 
    सर्व खेळतील वस्तू 
     भासे मजला लहान 

  घेतो पूर्णतः खेळणी
  डोईवरी उचलून 
  घर भर फिरवितो
  हसतो स्वतः खळाळून 

  हसताना  गेला की तोल
  पसरला खेळ घरभर
  भरण्याची चिंता  मनी 
 भांबावला क्षणभर 

असता हुकमाचा एक्का हाती
 सुरू करितो रडण्याचा डाव 
धावून येतातच सारी मंडळी 
चेहऱ्यावर साळसूदीचे भाव 

वैशाली वर्तक 
अहमदाबाद

सोमवार, २२ एप्रिल, २०२४

शेल काव्य. खोपा सिंगापूर शब्दगंध शेल रचना

        खोपा
 21/4/2024.  चित्र काव्य 
पाहूनी चित्र  मी रमले
रमले, खोप्यातच मन
किती पक्षी हा कलावंत 
कलावंत, तो सुगरण

पिले सुरक्षित राखण्या.       
राखण्या,  मऊ ते आसन.       
कसा विणला पहा खोपा
खोपा ,तयार  विना साधन

आणी तृण पाती चोचीने.                  
चोचीने गुंफली सुबक                    
 केली येण्या जागा आत                        
आत, पहा मऊ बैठक 

ईवले पिल्लू  भिरभिरे
भिरभिरे, पहाण्या आई
आई दरडावूनी सांगे
सांगे, आतच  रहा बाई

 कुठलीही    आई असो
असो, पक्षी वा मानवात
काळजी  घेण्याची वृत्ती
वृत्ती, दिसते  अभिजात 

बहिणाबाईं  काव्ये खोपा.  
खोपा वर्णिलेला सुंदर 
नसता हात बोटे  तरी 
तरी, विणीला मनोहर.






कष्टाचे चीज

कष्टाचे चीज      खरच त्यावेळी कापड गिरण्या जोरात चालायच्या.व नोक-या पण  मिळत होत्या.. जे कष्ट करण्यास तयार होते.त्यांना कष्ट करुन खरच शुन्या...