शनिवार, २० ऑगस्ट, २०२२

मनात खरच आहे का तिरंगा. चिरायू होवो प्रजासत्ताक दिन ‍‌


 

विषय - मनात खरच आहे का तिरंगा


*जन जागृतीची गरज*


घरा घरात फडकला तिरंगा

खरच स्थान  आहे का मनात

राहून राहून येतो  विचार 

काय उत्तर  द्यावे क्षणात


प्रश्न पडणेआहे स्वाभाविक 

आपणच आहोत  जवाबदार,,

आयत्या मिळालेल्या  स्वातंत्र्याची 

 किंमत कशी कळणार


  फिरवा नजर इतिहासात

 नव्या पीढीला करा जागृत

  समजवा यातना पारतंत्र्याच्या

  समजता होतील  स्वीकृत

  

  वाचा पाढे हुतात्म्यांचे

  तिरंग्यासाठी दिधले प्राण

 जाणा अभिमान  तयांचा

  व्यर्थ न जावो  त्यांचे बलिदान


  जाणता  महती तिरंग्याची

  नको नुसते वैचारिक महत्व

  मनातून करा त्याचे पठण

  कृतीत दिसेल त्याचे प्रभुत्व 


 देशप्रेम देशभक्तीची

द्यावी  सदैव शिकवण

विश्वात शोभावा भारत

याची ठेवा आठवण


वैशाली वर्तक 

अहमदाबाद




विषय .. चिरायू   प्रजासत्ताक दिन



ठेवू मान स्वातंत्र्य दिनाचा

नाही प्राप्त झाले  ते सहज

स्वातंत्र्य वीरांनी अर्पियले

प्राण त्यांनाच स्मरणे गरज.



नव्हते स्वातंत्र्य आपणास

केल्या चळवळी अविरत

किती सोसावा त्यांचा अन्याय

आधी करावा स्वतंत्र भारत


 केले देशासाठी दुर्लक्षित       

 स्वतःची कुटुंब  व संसार. 

 देश केला पारतंत्र मुक्त

 स्वातंत्र्य प्राप्ती हाच विचार 



 प्रजासत्ताक दिन साजरा

 करिती स्वतंत्र भारताचा

 प्रजेच्या सत्तेने चाले देश

 आनंदी दिन सा-या देशाचा



 बलसागर होवो भारत

 असती  आपुल्या अभिलाषा

 चिरायू  प्रजासत्ताक दिन

जगी  उन्नत भारत आशा


शुक्रवार, १९ ऑगस्ट, २०२२

बीज अंकुरे अंकुरे

विषय- बीज अंकुरे अंकुरे

     बरसता वर्षा धारा
     रान झाल ओल चिंब
     थेंब मुरता मातीत
    ऊभारुन आले कोंब

    कोंबातून डोकवती
    ईवलीशी दोन पान
    वा-यासंगे देती टाळी
     गात समृध्दीचे गान

     बीजे अंकुरे अंकुरे
     छोटी झाली पहा रोप
     नभाकडे पहाताती
     देण्या शिवारा निरोप

      शेते हिरवी दिसती
      किती पहा ती रेखीव
      जणु रेखाटल्या कोणी 
      ओळी हिरव्या आखीव
    
      दिसे सर्वत्र  हिरवे
      जणु  पाचू पसरले
      बळी राजा सुखावला
      मन प्रसन्न  जाहले

वैशाली अविनाश वर्तक
 

         



अभंग अधीर. वसंत प्रेमाचा

अधीर  झाले मी ! तव दर्शनास  
मनी एक ध्यास ! सदासाठी             1

मुखी नाम घेते ! करिते रटण
दाखव चरण! तूची आता                 2

कसे आले दिन ! गाठ भेट नाही 
मन वाट पाही  ! भेटण्याची              3

आप्त जना साठी ! जीव हा तुटतो
धीर हा सुटतो  !सदाकाळ                 4

 काय वेळ आली! कशी महामारी !
 कोण आम्हा तारी !तुजवीण              5

 कसा राखू धीर  !  मन  हे अधीर
 जरी मी सुधीर !   ठेवूकैसे               6

करीती प्रयास ! जरी सारे जन
निराशले मन! सकळांचे  !                    7


मन हे अधीर !ये ना उध्दाराया  !
तूच रामराया ! जगताला      !!            8    



वैशाली वर्तक

विषय. 

वसंत प्रेमाचा

प्रकार. अभंग

शीर्षक...      प्रेम ऋतू 

नाम   सदा ओठी | स्वप्नात रंगते |

निरस भासते.      | तव वीण.   ||.     १

सुवास प्रीतीचा     | वसंत प्रेमाचा |

हृदयी स्नेहाचा      |   प्रेम ऋतू.     ||  २

गंध सुमनांचा     | वसतो फुलात. |

तूची अंतरात.    |  क्षणोक्षणी. ||.       ३

मोहक रूपाने   |.  लावलीस आस |

भेटण्याचा ध्यास |.  लागे जीवा |.   ४    

मधाळ हास्याने   | वेडची  जीवाला. |

अधीर मनाला    | करितसे.  ||.          ५

प्रीत ती अबोल  | भेटण्या बहाणे. |

प्रेमाचे तराणे    | नित्यनवे.       ||.  ६

वाट पाहे नभी | शुक्राची चांदणी | 

तूची सदा मनी | माझा शशी.     ||७

वैशाली वर्तक

अहमदाबाद

रविवार, १४ ऑगस्ट, २०२२

चैतन्याच्या बहराने

सिध्द साहित्यिक  समूह

विषया - चैतन्याच्या बहराने

शृंगारली वसुंधरा
बरसता वर्षाधारा
सजलेली दिसे सदा
सांगे कानी थंड वारा

 चैतन्याच्या बहराने
हिरवळ चहुकडे
मन डोले आनंदाने
वाटे पाहू कुणीकडे

   निसर्गाची शिकवण
नसे सदा मरगळ 
जाता दुःख येते पहा
सुख रुपी हिरवळ

झाली भर  सौंदयात
 दिसे इंद्रधनु  मागे
 दावी अवनी नभीचे
 जणु प्रीतीचे  ते धागे


पुष्पे पहा बहरली
कळ्या डोकवी पानात
फूले फूलूनी ऊधळे
गंध ही आसमंतात


येवो असाच बहर 
तुझ्या साहित्यात सदा
मिळो यश किर्ती तुला
वाढो लौकिक  सर्वदा

वैशाली वर्तक

नवी पाटी

कष्टाचे चीज

कष्टाचे चीज      खरच त्यावेळी कापड गिरण्या जोरात चालायच्या.व नोक-या पण  मिळत होत्या.. जे कष्ट करण्यास तयार होते.त्यांना कष्ट करुन खरच शुन्या...